क्रम संख्या | शासक | शासनकाल |
---|---|---|
1 | जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर | 1526 - 30 ई. |
2 | नासिरुद्दीन हुमायूँ | 1530 - 56 ई. |
3 | जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर | 1556 - 1605 ई. |
4 | जहाँगीर | 1605 - 27 ई. |
5 | शाहजहाँ | 1627 - 58 ई. |
6 | औरंगजेब | 1658 - 1707 ई. |
7 | बहादुरशाह | 1707 - 12 ई. |
8 | जहाँदारशाह | 1712 - 13 ई. |
9 | फर्रूखसियर | 1713 - 19 ई. |
10 | मुहम्मद शाह | 1719 - 48 ई. |
11 | अहमद शाह | 1748 - 54 ई. |
12 | आलमगीर द्वितीय | 1754 - 58 ई. |
13 | शाहआलम द्वितीय | 1758 - 1806 ई. |
14 | अकबर द्वितीय | 1806 - 37 ई. |
15 | बहादुशाह द्वितिय | 1837 - 57 ई. |
नोट :-1540 ई. से 1545 ई. तक शेरशाह सूरी ने भारत पर शासन किया। 1540 ई. से 1555 ई. तक हुमायूँ ने निर्वासित जीवन व्यतीत किया | बाबर ने 1507 ई. में “पादशाह” की उपाधि धारण की, इससे पूर्व के शासक सुल्तान की उपाधि धारण करते थे। बाबर के चार पुत्र--हुमायूँ, कामरान, अस्करी तथा हिन्दाल थे | हुमायूँ बाबर का ज्येष्ठ पुत्र था। 1514-19 ई. के मध्य बाबर ने उस्ताद अली और मुस्तफा खाँ नामक दो तुर्क तोपचियों की सेवाएँ प्राप्त कीं तथा उन्हें तोपखाने का अध्यक्ष नियुक्त हुआ। पानीपत का प्रथम युद्ध (21 अप्रैल, 1526 ई.) में बाबर ने उजबेकों की युद्ध नीति तुगलमा युद्ध पद्धति तथा उस्मानी विधि अपनाकर इब्राहिम लोदी को पराजित किया था। भारत में पानीपत के इस युद्ध में पहली बार तोपों का प्रयोग किया गया । बाबर की तोपों का संचालन उस्ताद अली तथा बन्दूकचियों का नेतृत्व मुस्तफा ने किया था। खानवा के युद्ध (17 मार्च , 1527 ई.) में बाबर द्वारा राजपूत राणा सांगा पराजित हुआ। बाबर ने खानवा के युद्ध में “जेहाद” का नारा दिया तथा विजयोपरान्त “गाजी” की उपाधि धारण की | चन्देरी के युद्ध (29 जनवरी, 1928) में बाबर ने मेदिनी राय को पराजित किया। घाघरा के युद्ध में (1529 ई .) में बाबर ने अफगानों को हराया | बाबर की मृत्यु 26 सितम्बर, 1530 ई. को आगरा में हुई थी। सर्वप्रथम बाबर को आगरा के रामबाग में दफनाया गया परन्तु बाद में उसे उसकी इच्छानुसार काबुल में दफनाया गया। बाबर 'मुबाइयाँ' नामक पद्य शैली का जन्मदाता था। मध्यकालीन भारतीय इतिहास में हेमू पहला और एकमात्र हिन्दू राजा था, जिसने दिल्ली राज्य सिंहासन पर अधिकार जमाया था तथा “विक्रमादित्य” की उपाधि धारण की थी। अकबर और हेमू के बीच दिल्ली तथा आगरा पर पुन: अधिकार हेतु पानीपत का द्वितीय युद्ध 1556 ई. में लड़ा गया था। जिसमें हेमू की पराजय हुई |
अकबर के महत्वपूर्ण कार्य :-
क्रम संख्या | प्रमुख कार्य | वर्ष |
---|---|---|
1 | दास प्रथा का अन्त | 1562 ई. |
2 | हिन्दू तीर्थ यात्रा कर की समाप्ति | 1563 ई. |
3 | जजिया कर की समाप्ति | 1564 ई. |
4 | पर्दा शासन का अन्त | 1564 ई. |
5 | फतेहपुर सीकरी की स्थापना | 1571 ई. |
6 | राजधानी फतेहपुर सीकरी स्थानान्तरित | 1571 ई. |
7 | अकबर की गुजरात विजय | 1572 ई. |
8 | मनसबदारी प्रथा की शुरुआत | 1567 ई. |
9 | फतेहपुर सीकरी में इबादतखाने की स्थापना | 1575 ई. |
10 | मजहर दस्तावेज की घोषणा | 1579 ई. |
11 | दीन-ए-इलाही की स्थापना | 1582 ई. |
12 | इलाही संवत् प्रारम्भ | 1583 ई. |
13 | राजधानी का लाहौर स्थानान्तरण | 1585 ई. |
अकबर के दरबार के नो रत्न :-
मुल्ला दो प्याजा :-मुल्ला दो प्याजा को अपनी कुशाग्र बुद्धि, वाकपटुता एवं प्याज के प्रति अतिशय रुचि के कारण उन्हें 'मुल्ला दो प्याजा! की उपाधि दी गई थी। अब्दुरहीम खानखाना:-खानखाना बैरम खाँ के पुत्र थे तथा फारसी, तुर्की और हिन्दी के प्रकाण्ड विद्वान थे, बाबर की आत्मकथा “तुजुके बाबरी" का उन्होंने तुर्की भाषा से फारसी में अनुवाद किया। अकबर ने इन्हें 'खानखाना' की उपाधि से विभूषित किया था । हमीम हुमाम:-सम्राट् अकबर के अति निकट के मित्र थे। सम्राट की पाठशाला के प्रधान अधिकारी थे । अबुल फजल:-एक कुशल सेनानायक थे। “आइन-ए-अकबरी” तथा “अकबरनामा'” इनकी प्रमुख ऐतिहासिक कृतियाँ हैं। तानसेन:-अकबर के दरबार के प्रसिद्ध संगीतज्ञ एवं राजकवि थे। अकबर ने इन्हें कण्ठाभरण वाणी विलास की उपाधि प्रदान की | तानसेन का मूल नाम रामतनु पाण्डेय था। राजा मानसिंह:-एक प्रमुख सेनापति थे। मुगल साम्राज्य के विस्तार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था।
विविध तथ्य :-
मुगलकाल में पहला हिन्दी विद्वान “मुल्ला वाझी” था। मुगलकाल में जनपद को सरकार के नाम से जाना जाता था। मुगल सेना का सैन्य विभाग का प्रधान मीरबख्शी था । निकोलाओ मनूची को मुगल सेना में चिकित्सक नियुक्त किया गया था। मुगलकाल में “माल' भूराज्य से सम्बन्धित था। मुगल प्रशासन में विद्वानों एवं धार्मिक लोगों को दी जाने वाली भूराजस्व मुक्त अनुदान भूमि को “मदद-ए-माश ' कहा जाता था। इसे “सयूरगल'” भी कहा जाता था। मुगल प्रशासन में मुहत॒सिब जन आचरण के निरीक्षण विभाग का प्रधान था। माहम अनगा ने दिल्ली के पुराने किले में “खैरूल मनजिल” अथवा 'खैर-उल-मनजिल' नामक मदरसे की स्थापना की, जिसे “मदरसा-ए-बेगम ' कहा जाता था। मुगलकालीन दरबारी भाषा फारसी थी। अब्दुररहीम ने खानेखाना का मकबरा दिल्ली में है।
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