चन्द्रगुप्त मौये
स्ट्रैबी, एरियन, जस्टिन और प्लूटार्क ने मौर्य वंश के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य को 'सैण्ड्रोकोट्टस” के नाम से पुकारा है। सर्वप्रथम सर विलियम जोंस ने सन् 1793 ई. में सैण्ड्रोकोट्ट्स की पहचान चन्द्रगुप्त मौर्य से की है। विशाखदत्त कृत *मुद्राराक्षस” में चन्द्रगुप्त को *वृषल” या “कुलहीन” कहा गया है। तक्षशिला विश्वविद्यालय के आचार्य “चाणक्य” थे। यह सिन्धु एवं झेलम नदियों के बीच स्थित था। चन्द्रगुप्त मौर्य के आचार्य चाणक्य (कौटिल्य/विष्णुगुप्त) ने सप्तांग सिद्धान्त ( Sapatang Theory) का प्रतिपादन किया | उनके अनुसार राज्य के अंग हैं- राजा, आमात्य, जनपद, दुर्ग, कोष, सेना एवं मित्र | मैक्यावेली के 'प्रिंस' की तुलना कौटिल्य के अर्थशास्त्र से की जा सकती है। पाटलिपुत्र में चन्द्रगुप्त का महल मुख्यत: लकड़ी का बना था। जस्टिन ने चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना को 'डाकुओं का गिरोह' कहा है। इसी ने सैण्ड्रोकोट्टस (चन्द्रगुप्त मौर्य) तथा सिकन्दर महान की भेट का वर्णन किया है। अभिधान चिन्तामणि में कौटिल्य के कई नामों का उल्लेख मिलता है। यूनानी लेखक प्लूटार्क के अनुसार, *चन्द्रगुप्त ने छह लाख की सेना लेकर सम्पूर्ण भारत रौंद डाला और उस पर अधिकार कर लिया। चन्द्रगुप्त मौर्य ने सेल्यूकस को 305 ई. पू. में पराजित किया था, तत्पश्चात् हुई एक सन्धि के तहत सेल्युकस ने चन्द्रगुप्त को चार प्रान्त--एरिया, अराकोसिया, जेड्रोसिया और पेरीपेमिसडाई (काबुल, कन्धार, मकरान, हेरात) दहेज में दिये, जब चन्द्रगुप्त ने उसकी पुत्री से विवाह किया | प्लूटार्क के अनुसार चन्द्रगुप्त ने भी सेल्यूकस को 500 हाथी उपहार में दिये थे। संगम युग चार वर्णों में विभाजित था, ये वर्ण थे-अरसर (शासक ), अण्डनर (ब्राह्मण ), वेनिगर (वणिक ) तथा वेलाल (वेलार किसान )। तमिल ग्रंथ “कुरल” को “लघुवेद ' की संज्ञा दी गई है। तमिल रामायणम या रामावतारम् का लेखक कंबन था।
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